Monday, March 10, 2008


दिल में दर्द छुपाता हूँ
मैं नज्म ख़ुशी की गाता हूँ

खर्चता हूँ मैं मांजी को
अपना आज बचाता हूँ

पूरे होंगे कह कहकर
ख़्वाबों को भरमाता हूँ

दर्द के सेहरा में रहकर
सबकी खैर मनाता हूँ

करने तकाजे सजदों के
रोज़ ही मस्जिद जाता हूँ

ज़ख्म सहेजा करता हूँ
दर्द से शेर उगाता हूं

1 comments:

Ravi Rajbhar said...

wah......bahut khoob .