Wednesday, September 30, 2009

वो जो बिछडे हैं कब मिले हैं फ़राज़ ......


फिर किसी राहगुज़र पर शायद...
वो कभी मिल सकें मगर शायद.........


आज ये ग़ज़ल मुझे न जाने किस दुनिया में ले गयी! सारे वो चेहरे जिनके साथ कभी न कभी जिंदगी के बहुत खूबसूरत पल बिताये हैं, अचानक से जेहन में कौंध गए! जिन दोस्तों के बिना शायद ये जिंदगी ऐसी न होती जैसी आज है! आज भी जब दोस्ती की बात चलती है तो ये सब बहुत याद आते हैं मगर आज इस दुनिया की भीड़ में न जाने कहाँ गुम हो चुके हैं! न कोई पता...न ठिकाना! न ये पता की आज ये क्या कर रहे हैं!लेकिन यादों में उसी तरह ताज़ा हैं जैसे बरसों पहले थे! माधवी, ऋचा, जीतू ,मंजूषा ....आज तुम सब बहुत याद आ रहे हो! कहाँ हो यार तुम सब? वापस आ जाओ तो शायद फिर से लाइफ रिवाइंड हो जाए!

माधवी....तुम मेरी पहली पक्की सहेली थी! मुरैना के स्कूल में हमने एक साथ पहली क्लास में एडमिशन लिया था! तुम मेरी पहली दोस्त बनी थीं! आज तुमसे अलग हुए शायद पच्चीस साल हो गए ....अब शायद सामने भी आ जोगी तो नहीं पहचान पाऊँगी! मुझे अभी तक तुम्हारा चौथी कक्षा वाला चेहरा याद है! और तुम्हारे चिडिया के घोंसले जैसे घने घने बाल...हम सब तुम्हे चिढाया करते थे लेकिन दरअसल तुम्हारे बाल हम सबसे अच्छे थे ...! आज भी जब कभी मुरैना जाना होता है तो तुम्हारी दुकान " कुमार रेडियोज़" को ढूंढती हूँ जहां ये पहले हुआ करती थी! पर शायद इतने सालों में तुम्हारी दुकान भी बदल गयी होगी! कभी सोचती हूँ की अचानक कभी तुम अपनी दूकान के बाहर दो बच्चों के साथ खड़ी नज़र आ जोगी....हो सकता है तुम्हारी बेटी आज बिलकुल वैसी ही हो जैसी तुम क्लास फोर्थ में थीं!

और ऋचा तुम कहाँ चली गयीं यार? तुम मंडला में अपने बारहवी क्लास के ग्रुप की सबसे क्यूट लड़की और मेरी बहुत प्यारी दोस्त! तुम्हे याद है हब सब फ्रेंड्स अक्सर एक साथ होते थे तो कहते थे कि आज से पंद्रह साल बाद हम सब एक बार फिर इकट्ठे होंगे! लेकिन ये सब प्लान जो मासूमियत और बेफिक्री के आलम में बनते हैं....दुनियादारी में उलझकर हमें याद भी नहीं रहते! और लोगों का तो फिर भी मुझे पता है कि वो लोग कहाँ है मगर तुम्हारे बारे में कुछ पता नहीं है! तुम पढाई में बहुत तेज़ थीं , हो सकता है आज तुम किसी बहुत अच्छी जगह पर होगी! तुम्हारे साथ की गयी सारी शरारतों को आज भी मैं मुस्कराहट के साथ याद करती हूँ! आ जाओ यार...एक बार फिर से वो सारी शरारतें दोहराने का मन कर रहा है!

और जीतू....तुम तो ऐसे गायब हो गए यार कि ढूंढ ढूंढ कर हम थक गए तुम्हे! तुम मुझे उस वक्त मिले जब पढाई ख़त्म करके हम लोग कैरियर की चिंता में डूबे हुए थे! कम्पयूटर क्लास में हुई हमारी पहचान कितनी अच्छी दोस्ती में बदल गयी थी! मैं तो जल्द ही कम्पयूटर से ऊब गयी थी लेकिन तुम उसी में आगे बढ़ना चाहते थे!मैंने पी.एस.सी. की तैयारी की और तुम्हारे ख्वाब अपना काम शुरू करने का था! शाजापुर में बिताये हुए चार साल तुम्हारे ज़िक्र के बिना पूरे नहीं होंगे! दिन भर की थकान के बाद शाम को तुम्हारे साथ बैठ के हँसना बहुत सुकून भरा लगता था! मैं और गड्डू जब भी एक साथ होते हैं...तुझे ज़रूर याद करते हैं! मेरा नंबर तो वही है यार....कभी कॉन्टेक्ट करने की कोशिश क्यों नहीं करते! अगर कंट्रोल रूम से भी मांगोगे तो मेरा नंबर मिल जाएगा! अचानक तुम्हारा इस तरह गायब होना हमें नहीं भय! बस अब जल्दी से वापस आ जाओ....

तुम सब दोस्तों को मैंने कितना ढूँढा.....ऑरकुट पर तलाशा इस उम्मीद के साथ की यहाँ तो तुम हंड्रेड परसेंट मिल ही जाओगे! मगर कितने आउट डेटेड हो यार! यहाँ भी नहीं हो! अब ब्लॉग तो क्या ही पढ़ते होगे तुम लोग! पर मैं भी उम्मीद कहाँ छोड़ने वाली हूँ! पता है...जब कभी रेलवे स्टेशन पर जाती हूँ चैकिंग करने तो आँखें भीड़ में इधर उधर कुछ खोजती रहती हैं! शायद कभी अचानक तुममे से कोई मिल जाए....और " अरे तू..." कहते हुए हम गले लग जाएँ!

वो जो बिछडे हैं कब मिले हैं फ़राज़ ......
फिर भी तू इंतज़ार कर शायद.....

Wednesday, September 16, 2009

फोकट का मनोरंजन.. अति उत्तम अति उत्तम

बातें देने में हम भी माहिर हैं....किसी भी आम भारतीय की तरह! अभी दो दिन पहले ही किसी से कह रहे थे कि देखो जरा हमारे देश में लोगों को कितनी फुर्सत है....कहीं भी टाइम बर्बाद करते रहते हैं, समय की कीमत नहीं समझते, जहां फोकट का मनोरंजन होते देखा वहीं रुक गए अपने सारे काम धाम भूलकर! अगला भी पूरी तन्मयता से हमारी बातें सुनकर हाँ में हाँ मिला रहा था! और समय के ऊपर ये सारा भाषण हम अपने ऑफिस में बैठकर दे रहे थे! सरकारी समय को हमने समय की गुणवत्ता का बखान करने में खर्च दिया! फिर ऑफिस से निकलने लगे....ड्राइवर कहीं चाय पीने चला गया था! थोडा लेट हो गया! हम भाषण मोड में तो थे ही साथ ही जो लेक्चर अभी अभी पेल कर आये थे वो याद था ही सो ड्रायवर को भी समय की कीमत समझाते आये! ड्रायवर भी मुंडी हिलाता रहा या यह कहना ज्यादा सटीक होगा की हम बीच बीच में " समझे" " समझे" पूछ पूछकर उसकी मुंडी हिलवाते रहे!
Motorcycle---Cartoon-1_fullअब साहब हुआ क्या की दो किलोमीटर ही चले होंगे इत्ते में क्या देखते हैं कि सड़क पर भीड़ जमा है! उत्सुकता वश देखा तो कोई एक्सीडेंट हुआ है! हमें अपने भाषण पर सही उदाहरण भी मिल गया ! " अब देखो जनता को...अपना काम धंधा छोड़कर एक्सीडेंट देखने में ही भिड गयी है!" हमने ड्रायवर से कहा! इस बार उसने मुंडी नहीं हिलाई ! हमारी बात से ज्यादा इंटरेस्ट उसे मोटर साइकल और स्कूटर के एक्सीडेंट को देखने में आ रहा था! हमने भी उत्सुकता भरी निगाह एक्सीडेंट स्थल पर डाली! नज़ारा सचमुच महा रोचक था! मोटर साइकल वाला अपनी मोटरसाइकल रोक कर खडा था! स्कूटर वाला स्कूटर सहित नीचे गिरा था! स्कूटर का हैंडल पकडे आधा उठा आधा पड़ा स्टाइल में अधलेटा सा हो रहा था! और सबसे बड़ी बात जिसने भीड़ को चुम्बक की तरह बांधे रखा था....कि दोनों जने फ्री स्टाइल झगडा कर रहे थे!इस झगडे में भी सबसे बड़ी बात जिसने भीड़ ( अब जिसमे हम भी शामिल थे) को सारा काम काज भूलने पर मजबूर कर दिया था....कि स्कूटर वाला झगडे में इतना तल्लीन था कि पड़े पड़े ही झगड़ रहा था! भीड़ में से किसी ने कहा भी " भाई ॥पहले स्कूटर तो खडा कर ले...फिर लड़ लेना" स्कूटर वाला मोटरसाइकल को भूलकर उस भले आदमी पर गुर्रा के पड़ा " तेरेको क्या करना...मैं चाहे पड़े पड़े लडूं या खड़े खड़े। तू अपना काम देख" भला आदमी अपना सा मुंह लेकर रह गया! और हमें लगता है कि इसी तुनक में स्कूटर वाला खडा होता भी होगा तो और नहीं हुआ!
अब झूठ क्यों कहें , ड्रायवर ने हमारी गाडी भी रोक दी...हम भी चुप्प पड़ के रह गए! अब तक हम भाषण वाषण सब भूल चुके थे और दोनों कि बहस बाजी का पूरा आनंद उठा रहे थे! जैसा किआम तौर पर हर उस एक्सीडेंट में होता है जिसमे कि दोनों में से किसी पार्टी को चोट नहीं लगती है! लेकिन चूंकि कपडों पर धूल मिटटी लग जाती है तो उसके एवज में सामने वाले की ऐसी तैसी करके अपनी भडास निकालते हैं!
" देख के नहीं चला सकता क्या गाडी....scooter अभी मुझे लग जाती तो?""
लगी तो नहीं न....क्यों बेकार की बहस कर रहा है!
"" लगी नहीं वो तो भगवान का शुक्र है...वरना तूने तो कोई कसर नहीं छोड़ी थी...अभी लग जाती तो?""
अरे ऐसे कैसे लग जाती....बीस साल हो गए गाडी चलाते चलाते!..
.."" तो मैं क्या नौसिखिया हूँ....मुझे बाईस साल हो गए! अगर मुझे कहीं लग जाती मुझे तो तेरी वो हालत करता की मोटर साइकल को हाथ लगाने से पहले दस बार सोचता""
अरे...लगी तो नहीं न तेरेको...क्यों एक ही बात बार बार कह रहा है!" अब मोटरसाइकल वाले को गुस्सा छूटा ! अभी तक स्कूटर वाला नीचे ही पड़ा था....इतने में मोटर साइकल वाले का मोबाइल बजा! उसने स्कूटर वाले को से कहा " एक मिनिट भाई..." और फोन सुनने में लग गया! स्कूटर वाले ने भी पूरा सहयोग करते हुए मौन धारण कर लिया! " अरे बेटा ...बस दो मिनिट में आया" शायद मोटर साइकल वाले को याद आया की वो अपने बच्चे को स्कूल से लेने जा रहा था! उसने मोटर साइकल स्टार्ट कर दी! स्कूटर वाला चिल्लाया " अरे ॥ऐसे कैसे जा रहा है? मेरे कपडे जो गंदे हो गए उसका क्या..?" मोटर साइकल वाले ने हाथ हिलाया और चलता बना!" स्कूटर वाला खिसिया कर रह गया! उसने भी स्कूटर उठाया ...कपडे झाडे....स्कूटर स्टार्ट किया और भीड़ को देखकर बड़बडाया " देखो तो सही ..कैसे कैसे गाड़ी चलाते हैं..अभी लग जाती तो?" भीड़ में से कुछ लोगों ने सर हिलाकर उसका समर्थन किया! स्कूटर वाला भी चला गया!
फिलिम का एंड हुआ....ड्रायवर ने भी गाडी स्टार्ट करी....भीड़ भी छंटने लगी! हमने ड्रायवर को कहा " अब अपन तो इसलिए और रुक गए की कहीं किसी को अस्पताल वगेरह तो नहीं ले जाना " ड्रायवर मुस्कुरा दिया और मुंह घुमाकर हम भी!

Thursday, September 3, 2009

गलत टाइम पे हँसे तो फंसे.....

मुझे लगता है हम हिन्दुस्तानी कुछ अलग ही मिट्टी के बने होते हैं! हर हाल में मस्त....स्कूल के दिन याद आते हैं!एक छात्र की ठुकाई चल रही है! छात्र दो सेकंड को बुरा सा मुंह बनाता है अगले ही पल अपने साथी को देखकर चेहरे पर ढाई इंच की मुस्कान फ़ैल जाती है! वो जानता है की इस मुस्कान के एवज़ में दो डंडों का प्रसाद और मिलेगा मगर पट्ठा हंसने से बाज नहीं आएगा!

अभी कुछ दिन पहले की बात है थाने में एक क्रिमिनल आया! रिवाज है की थाने में आने वाले हर अपराधी का फोटो खींचा जाता है व एल्बम में नत्थी कर दिया जाता है! इन महाशय को भी फोटो खिंचवाने के लिए खडा किया गया!एक कॉन्स्टेबल हाथ में कैमरा लेकर खडा हुआ चोर महाशय को भी सामने खडा किया गया! जैसे ही कॉन्स्टेबल क्लिक करने को हुआ चोर मुस्कुरा दिया! मुस्कुराती हुई फोटो कैमरे में कैद हो गयी!
" अबे..हँस मत , सीधा खडा रह! बिना दांत दिखाए" कॉन्स्टेबल ने घुड़का!
चोर ने हाँ में सर हिलाया ! फिर से कॉन्स्टेबल ने कैमरा उठाया क्लिक किया पर चोर की बत्तीसी इस बार भी फोटो की शोभा बढा रही थी!
" साले ...तेरी शादी के लिए फोटो खींच रहा हूँ क्या? बिना हँसे खडा रह चुपचाप नहीं तो दूंगा एक कनपटी के नीचे , हँसना भूल जाएगा!" कॉन्स्टेबल को इस बार जोर से गुस्सा आया!
साहब ...अब के नहीं हसूंगा " चोर ने उसे आश्वस्त किया! मैं और टी.आई बैठे बैठे फोटो खींचने का इंतज़ार कर रहे थे! फिर से चोर खडा हुआ...कॉन्स्टेबल ने कैमरा उठाया , और ये क्या.....चोर खुद को रोकते रोकते फिर से मुस्कुरा दिया! कॉन्स्टेबल आगे बढा....एक चांटा रसीद किया उसके गाल पर!
" साले...तेरी प्रॉब्लम क्या है? क्यों इतना खुश हो रहा है...दांत तोड़ दूंगा सामने के!" कॉन्स्टेबल बुरी तरह गुर्राया!
" सौरी साब....वो क्या है की जैसे ही फोटो खिंचने को होता है , मुझे अपने आप हंसी आ जाती है"
" क्यों आ जाती है तेरेको हंसी....किसी फिलिम का हीरो है क्या तू "
" पक्का साब...इस बार नहीं हसूंगा, मारना मत" चोर ने वादा किया
ठीक है...आखिरी मौका दे रहा हूँ...अब के हंसा तो इत्ती ठुकाई करूँगा की ...." कॉन्स्टेबल ने वाक्य अधुरा छोड़ कर कैमरा थाम लिया! फिर से फोटो खींचने की कवायद शुरू हुई.....मुझे भी उत्सुकता थी...अब क्या होगा? तीन ,दो, एक....क्लिक और अगले ही पल एक झन्नाटेदार चांटा फिर से चोर के गाल पर पड़ा और कुछ उच्च कोटि की गालियाँ भी हवा में तैर गयी! इतने में मेरे मोबाइल पर मैसेज टोन आई और मैसेज था " smile is the language of love...smile is way to get success.smile improves your personality....keep smiling even u are going thru your worst phase. never leave smiling" मुझे हंसी आ गयी...किसी ने दो घंटे पहले मैसेज किया था जो अब मेरे पास पहुँच रहा था....वाह रे ऊपर वाले तेरा सेंस ऑफ़ ह्यूमर भी कमाल का है! क्या सही टाइमिंग है! एक बार फिर मैंने मैसेज पढ़ा ..फिर चोर को देखा जो चांटा खाकर गाल पे हाथ धरे खडा था! खैर दो तीन रीटेक के बाद सीन ओके हो ही गया!

हमें याद है ऐसे ही कई बार गलत जगह, गलत टाइम पर इस कमबख्त हंसी ने हमें भी बहुत हलकान किया है! एक बार हमारे मकानमालिक अंकल सीढियों से नीचे गिर गए...आंटी जी भी हंसमुख टाइप की थीं! उनके मुंह से निकला..." अरे देखो तो सही...ये कैसे गोल गोल लुढ़क कर गिर गए" आंटी भी हंसी...हम और जोर से हँसे! आंटी बड़ी थीं उनसे किसी ने कुछ न कहा...पर हमें डांटने में किसी ने कोई कसर न छोड़ी! पहले मम्मी हर साल गर्मियों की छुट्टियों में नानी के गाँव ले जाती थीं! जब छुट्टियां बिताने के बाद हम विदा होते थे तो सीढियों से नीचे उतरने तक सब हँस रहे होते थे लेकिन जैसे ही बस स्टैंड की तरफ चलना शुरू होते वैसे ही मम्मी , मौसी और नानी चिपट चिपट कर रोने लगतीं! बिना किसी पूर्व भूमिका के इस तरह सुबक सुबक कर रोना देखकर हम खी खी कर के हँस देते! मम्मी मौसी के गले लगे लगे ही हमें घूरतीं....रोने तब भी जारी रहता! एक पल को सहम कर हम चुप हो जाते...फिर दुसरे ही पल मुंह फेर कर आवाज़ दबाकर हम सब भाई बहन हंसते! जब हंसी आती है तो किसी के रोके नहीं रूकती...बेचारा चोर भी क्या करता! खैर अब वक्त की मांग है की कई जगह पर हंसी कंट्रोल करना बहुत जरुरी हो जाता है...अब इसमें थोडी बहुत निपुणता हासिल कर ली है! कम से कम इतना तो हो ही गया है कि उस वक्त कैसे भी रोक लेते हैं बाद में भले ही अकेले ही हँस लें! चलते चलते ईश्वर से एक प्रार्थना...." हे प्रभु, कभी किसी को यूं नीचा न दिखाना
गलत टाइम पर हंसने से हमेशा बचाना"
!